Thursday 11 April 2013

श्री प्रभात रंजन सरकार और प्रउत

श्री प्रभात रंजन सरकार न केवल एक महान अध्यात्मिक गुरु थे, बल्कि वे एक महान दार्शनिक, इतिहासवेत्ता तथा अर्थशास्त्री भी थे । उन्होंने जो कुछ भी लिखा है वह एकदम नया तथा मौलिक है जिसका उद्देश्य मानवजाति का सर्वात्मक कल्याण और विश्व के लिए नई व्यवस्था देना है । जहाँ आज सर्वत्र लोभ, अपराध तथा आतंकवाद का बोलबाला है , उनके विविध विषयों से सम्बंधित लेखों को पढ़ने से लगता है की जैसे अनमोल हीरे जवाहरात की खान मिल गई हो।

श्री प्रभात रंजन सरकार के आर्थिक-सामाजिक-राजनैतिक दर्शन का संक्षिप्त रूप ही प्रउत है। ''प्र " से प्रगतिशील , "उ" से उपयोग तथा "त " से तत्त्व । इस प्रकार दर्शन का पूरा नाम है "प्रगतिशील उपयोग तत्त्व" । यूँ तो प्रउत एक सामाजिक-आर्थिक सिद्धांत है परन्तु इसमें आध्यात्मिकता के साथ उत्पादन की दक्षता तथा वितरण में न्याय का मधुर समन्वय किया गया है ।

प्रउत को एक व्यावहारिक दर्शन कहा जा सकता है क्योंकि इसमें बड़े-बड़े काल्पनिक सूक्ष्म विचारों पर जोर न देकर उन वास्तविकताओं पर ध्यान दिया गया है जिनसे लोगों का अधिकाधिक लाभ हो सकता है। यह एक ऐसा विचार है जो पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों के सैद्धान्तिक आधार को चुनौती देता है । श्री सरकार के अनुसार प्रउत वर्तमान युग के सामाजिक-आर्थिक व्यवस्थाओं के बौद्धिक दिवालियेपन की प्रतिक्रिया मात्र नहीं है, बल्कि एक सार्वभौमिक सिद्धांत है जो आने वाले बहुत लम्बे समय तक मानव समाज के भविष्य को उज्जवल बनाये रखेगा । उनके अनुसार विभिन्न सभ्यताओं के समाज चक्रों में पूंजीवाद तथा साम्यवाद केवल अस्थायी स्थितियां हैं । परन्तु प्रउत, जिसकी आधारशिला मनोविज्ञान,तथा मानव समाज के क्रमिक विकास के स्थायी सिद्धांत हैं सभी देशों पर लागू होता है।
 

-रवि बत्रा